नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-23
लक्षणा.....लक्षणा.... मुझे लगता है तुम्हें एक बार वापस जाने से पूर्व नागराज से सलाह लेकर जाना चाहिए। अचानक अपने पीछे से आई अंजनी आवाज ने लक्षणा का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। और तब लक्षणा ने पलटकर देखा। तब लक्षणा को एक वृद्ध महिला उनके नाम से पुकारती हुई नजर आई।
बेशक,,,,,दादी प्रणाम आपने जैसा कहा वैसा ही करूंगी। लेकिन आप मुझे कैसे जानती हो?? और आपने यह क्यों कहा कि मुझे जाने से पहले नागराज के दर्शन करने चाहिए। यह तो इस गांव की रीत ही रही है, कि हर आने जाने वाला रुककर उनके दर्शन अवश्य करता है। फिर इसमें नया क्या था??लेकिन चुकी आपने मेरा नाम लेकर पुकारा है, इसका आशय है कि आप कोई चीर परिचित हैं। कृपया अपना परिचय दें, क्योंकि शायद इससे पूर्व हम कभी मिले ही नहीं,, या यह भी हो सकता है कि मुझसे कोई भूल हो रही हो।
तब उन वृद्ध महिला ने मुस्कुराते हुए कहा..... नहीं लक्षणा आजतक इसके पूर्व तुमने मुझे नहीं देखा। लेकिन फिर भी मैं तुम्हें तुम्हारे जन्म से पूर्व ही जानती हूं। तब से जब से तुम थी भी नहीं। लक्षणा आश्चर्यचकित हो,l उन्हें गौर से देखने लगी। यह कैसी पहेली है??आखिर आप है कौन?? और आप क्या चाहती हो?? थोड़ी सतर्कता के साथ इसके पहले कि वह कदंभ का स्मरण करती। वृद्धा ने उसे इशारा कर कहा कि इस समय सिर्फ तुम्हारी और मेरी बात है, कदंभ के स्मरण की आवश्यकता नहीं।
ठहरों कहते हुए वे वृद्धा अचानक एक नवयुवती के रूप में आ गई। तब लक्षणा ने हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम करते हुए कहा, आप जो भी हो आप को मेरा प्रणाम। आपकी वाणी में ममत्त्व और चिंता का भाव है। फिर भी मैं आपके चमत्कार और सलाह का कारण अवश्य जानना चाहूंगी।
तब वह देवी मुस्कुराते हुए कहने लगी,,, बेटी लक्षणा जब पूर्व जन्म में संतृप्त हो तब तपस्यारत निराहार और निर्जला व्रत कर रही थी। उस समय तुमने मेरा स्मरण कर मुझे प्रसन्न किया था। तब मैने प्रसन्न होकर दो वर मांगने को कहा। तब तुमने प्रथम बार में मेरा आशीर्वाद और साथ मांगा और दूसरी बार में इस सृष्टि की उपस्थित तक मुझे सही समय पर सलाह देने के लिए अपने वर के रूप में मांगा। अभी वह सही समय आ चुका है, क्योंकि तुम्हारे जीवन का एक नया पड़ाव शुरू होने जा रहा है।
लक्षणा मैं तुम्हें तुम्हारे पूर्व जन्म के विषय में कुछ नहीं बताना चाहती, क्योंकि वह तुम्हें स्वयं ही ज्ञात हो जाएगा। लेकिन इस जन्म में आगे के सुखमय जीवन का वरदान देते हुए मैं "साकंबरी" तुम्हें वरदान स्वरूप इस बात से आश्वस्त कराती हूं, कि आज के पश्चात तुम्हें कभी भी भूख, प्यास या दर्द का एहसास नहीं होगा। अब तुम्हारा शरीर प्राकृतिक पदार्थों से उर्जा गृहण करने की बजाय प्रकृति में निहीत सात्विक ऊर्जा, जल, वायु और सूर्य की ऊर्जा से अपने आप ही ऊर्जा संग्रहण कर लेगा।
इसके पूर्व यह वरदान इस सृष्टि में बहुत कम लोगों को मिला। लक्षणा रही बात नागराज से मिलकर जाने की, तो मैं तुम्हें एक विशिष्ट वस्तु उनके दर्शन के समय उन्हें भेंट चढ़ाने को देती हूं। जिसे पाकर वे प्रसन्नचित होंगे। साथ ही साथ तुम्हें उनसे विशेष सहायता भी प्राप्त होगी, कहते हुए उन्होंने अपने हाथ में रखा एक विशेष पुष्प लक्षणा को प्रदान किया। जो लक्षणा के हाथों में आते ही अदृश्य हो गया।
तब उन देवी ने कहा, लक्षणा यह अभय वरदान ही अक्षय पुष्प इसे जब भी जिस भी समय किसी भी देवी देवता के पूजन के समय इसका स्मरण करोगी। यह स्वयं ही प्रकट हो जाएगा, और तुम्हारा हाथ सुगंधित फूलों से भर उठेगा। ये कोई सामान्य पुष्प नहीं है। यह निश्चित है कि इन पुष्पों से तुम जिस भी किसी भी देवी देवता का पूजन करोगी, वे अवश्य ही तुम्हें विशेष वर प्रदान करेगा।
इन पुष्पों की एक विशेषता यह भी है, कि यदि दावानल (आग से गिरा हुआ जंगल) पर भी यदि तुम सींच दोंगे, तो वह भी अग्नि शांत हो जाएगी। जल में , वायु में या किसी भी स्थान पर आने जाने के लिए जब तुम्हें कोई रास्ता नजर ना आए, तब उस समय इन पुष्पों को हाथ में ले मेरा स्मरण करना तुम्हारे लिए सही रास्ता अपने आप खुलता चला जाएगा।
यह अचूक शक्ति इस सृष्टि में किसी स्थान की बधाओ से परे है। तुम्हारा कल्याण हो कहते हुए वे अदृश्य हो गई। लक्षणा ने प्रफुल्लित मन से उन्हें पुनः प्रणाम किया और धन्यवाद कहे अपनी नानी के घर लौट आई। तैयारी कर सभी खुशी-खुशी छुट्टियों की समाप्ति पर अपने घर की और चल पड़े। चंदा प्रफुल्लित थी, कि उसे इतने दिनों अपने मायके में वर्षों बाद रहने का मौका मिला।
भावपूर्ण विदाई के पश्चात सभी जब गांव की सीमा पर पहुंचे, तब लक्षणा ने चंदा देवी को नागराज के दर्शन की इच्छा प्रकट की और स्वयं अकेले जाकर उनके दर्शन की अनुमति मांगी। जिसे चंदा ने सहर्ष स्वीकार किया और जैसा साकंबरी देवी ने लक्षणा को सलाह दी थी कि वह नागराज की प्रतिमा के समक्ष जा स्तुति पाठ करे।
लक्षणा नागराज के दर्शन के लिए और अपने परम मित्र कदंभ को पुकार वे दोनों तलछटी में स्थित इस नाग मंदिर में इतने भयावर वातावरण में आ गए। वह भी सिर्फ इसलिए कहीं ना कहीं उन दोनों के मन में उतनी ही आस्था, विश्वास और पराशक्ति के अनुभव करने की थी, कदंभ ने हर कदम पर अपने मित्र लक्षणा को आगे और खुद को पीछे रखा। सिर्फ इसलिए कि थोड़ी सी भी चूक उस वातावरण में खतरनाक हो सकती थी। और ऐसे समय में वह लक्षणा को आगे कर उसे संभालते हुए उसके पीछे पीछे चल रहा था। वही कदंभ खुद मन ही मन ठीक ऐसे ही मन ही मन लक्षणा को कोई चोट ना लगे या कोई संकट न आए, इसलिए स्वयं आगे आगे चलकर उसका मार्गदर्शन कर रहे थे।क्या अद्भुत मित्रता थी उन दोनों में ,दोनों ही एक दूसरे की फिक्र करते और ईश्वर का गुणगान करते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। इसी क्रम में जब वे दोनों अभिषेक करने में व्यस्त थे, उसी समय के भीतर प्रकृति ने जैसे अपना रौद्र रूप ले उन्हें अपनी परीक्षा की परिकाष्ठा पर परखना चाहा और पर्वत के शिखर में अचानक हलचल हुई और एक विशाल शिलाखंड रखते हुए उस मंदिर की और आने लगा। जिसे देख लक्षणा और कदंभ घबरा गए।
क्रमशः....